मंजूषा कला अंग प्रदेश की लोककला है, ये बिहुला-विषहरी की लोकगाथा पर आधारित है | अंग प्रदेश वर्तमान में बिहार के भागलपुर जिले के आसपास के क्षेत्र को जाना जाता है | ये कला बिहार के चर्चित कलाओं में से एक है |
मंजूषा क्या है ?
मंजूषा अंग प्रदेश में मनाये जाने वाले विषहरी पूजा से सम्बंधित है, ये संस्कृत शब्द “मंजूषा” से उधृत है जिसे मंदिरनुमा आकृति जो बाँस, जूट रस्सी, कागज़ से बनाया जाता है जिसमें उपासक पूजा की सामग्री रख कर उपासना करते है | इस आकृति पर बिहुला-विषहरी की कहानी के पात्रों को उकेरा जाता है | मंजूषा में बिहुला ने अपने पति को सर्प-दंश के बाद पुनः जिन्दा किया था और विषहरी देवी के कोप और कृपा दोनों की व्याख्या है |
मंजूषा कला की विशेषता
- तीन रंगों का प्रयोग
- बॉर्डर (किनारे) का महत्व
- ये एक रेखाचित्र है |
- ये एक लोककला है |
- क्रमिक एवं श्रृंखलाबद्ध चित्र कला
- बिहुला-विषहरी की लोकगाथा पर आधारित लोककला है |
- इस कला में अंग्रेजी के ‘X’ वर्ण के रूप में आकृतियों को उकेरा जाता है |
- मंजूषा कला के मुख्य आकृति है :- सर्प, चंपा फूल, सूर्य, चंद्रमा, हाथी, कछुआ, मछली, मैना, कमल फूल, कलश, तीर-धनुष, शिवलिंग, पेड़, तालाब, मंजूषा
- मंजूषा कला के मुख्य किरदार – शिव, मनसा(विषहरी), बिहुला, बाला, हनुमान, चांदू सौदागर, नेतुला धोबिन इत्यादि |
- मंजूषा कला के बॉर्डर – बेलपत्र, लहरिया, त्रिभुज, मोखा, सर्प की लरी
- विजय की गाथा है – बिहुला द्वारा अपने पति को पुनर्जीवित करना
- नारी शशक्तिरण की गाथा – बिहुला के जीवन संघर्ष और विजय
- प्राकृतिक चित्रण की कला